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संदेसो

प्रवीण-पच्चीसी
छंद नाराच
अग्यान दूर आयनै विग्यान ग्यान वापरै।
वसै विकास भावना उजास मन्न आपरे।।
मनां विकार मारनै पधार पंत पाधरै।
प्रवीण राय पायनै उपाय भाय आदरै।।1।।
सतोल बात बोलसी अतोल बोल ना अखै।
सभा मिझाँन ध्यान सूं सुजांण झूठ ना झखै।।
करंत बात कोविदो सुघोल लेय गांम नै।
हजारूं लोग जोवसी मुखारबिन्द सामनै।।2।।
कराय जाय कामनै चलाय भाव चातुरी।
सुणात गात सज्जणां उपै न बात आतुरी।।
मनां कुमोड़ तौड़ नै सुठोड़ जोड़ सावसी।
बिगाड़ राड़़ ताड़नै उझाड़ रोक आवसी।।3।।
घरे सुहीय धीरता अधीरता न आवसी।
मगांज पक्ख होण नै सुजांण लक्ख जावसी।।
प्रवीण खांण पींण में अजींण होड ना करे।
दुखी न होत दुक्ख में सुकूंन कोड ना करे।।4।।
सुनीत रीत सांसरी परीत भीत पारखी।
सुधार काज सैकडू खरच्च नांय खारकी।।
गजब्ब घोल गूंथिया सका न और सूध रै।
प्रवीण राय पूछसी उपाय थाय ऊधरै।।5।।
खुसी सूं चीज खायतैं नराज ना डुलै नहीं।
कयो नटालवे कभी जु जुंझलो जुलै नहीं।।
जिज्ञासु भाव जोर रो पठाण हेत पेखिये।
छुपै न भाव छोकरां दसा प्रवीण देखिये।।6।।
डरे जरुर डोकरां धकाल खाय दौड़ ले।
हठी पणो घणो न हौ छुड़ात चीज छोड़ ले।।
चमंक भाल चौगणी निकाल वैंण नागरी।
दिलां खुसीज देखिये भवीस देस भागरी।।7।।
झपेट धूर्त ना झिलै हितां न हांण होण दे।
उन्नत पथ्थ आयनैं खरी न बात खोण दे।।
सालीनता सुधीरता प्रवीणता पिछांणिये।
पुरुश देह पायके जुवा न गर्व जांणिये।।8।।
विवाह ओसरां वले परम्परा कूं पायनैं।
कराय खर्च कोविदी अधार देख आयनै।।
कुटुम्ब काम काडता गिरै न साख गेहरी।
जमाय पेठ जाजमां दरीद्रता न देहरी।।9।।
गंभीर नार गात सूं उपाय सर्म अंख में।
कलावती कुसलता झुकाय नैंण झंक में।।
सुधा समांण बोल सूं  सुआदरां उचारती।
भरे न क्रोध भावना नवीनता निखारती।।10।।
हठी मठी न हासणी हुलास बाम में हुवै।
भचाक बोल न बके सरीर नम्रता नुवै।।
सहिस्णुता स्वभाव सूं जमाय साख जोर री।
प्रवीण काम काज में प्रभाज अठ पौर री।।11।।
सरीर वृद्ध सीर में धिकाय धीर धार ले।
मदांज लोभ काम क्रोध मोह भाव मार ले।।
सला उपाय सांतरी दिसा भावी दिखाय दे।
प्रवीण भाव पेखिये रिझाय नेक राय दे।।12।।
रुखाल गेह री रखाय सब्द राम साथ में।
मिलै जु खाय मस्त रै हिलाय माल हाथ में।
सबां भली चहे सदा छछद्म नीत छोड़ दे।
स्वाद जीभ त्याग के जगत्त मुक्ख मोड़ दे।।13।।
न ध्यान मान सांन ना सुग्यान वान संचरै।
पखंड दूर पूर व्हेयसोक हर्ख ना करै।
भरे न लोभ भावना मनां न नार माणिये।
प्रवीण संत पुन्य ते जरुर मोख जांणिये।।14।।
पढ़ाय भाव प्रेमसूं जगात वाद ना झटै।
उतार फर्ज आपरो हितां करन्न ना हटै।।
भराय त्याग भावना लाखां न लोभ लालची।
रियां प्रवीण रासते ज सेवना गुरु सची।।15।।
कवी प्रवीण कथ्थ सूं सुपथ्थ सत्त संच रै।
लिखत्त सत्त लेखणी कुदत्त मत्त ना करै।।
भलै सुमत्त भावना कुलत्त पथ्थ ना किसे।
सहीत कर्त्त मांय सर्त्त धूर्त गर्त ना घिसे।।16।।
कलायकार कीरती विविध भाव विस्तरै।
दुनीज देख देख नै झुकाय नैंण यूं झुरै।।
विभोर भाव सूं भये सुभाल भाल साखसी।
हुवै न होड और ओर अद्वितीय आखसी।।17।।
प्रवीण सासकां सुभाव दाव पेच देखिये।
जना हिताय भावना पिताय चाव पेखिये।।
हुवे सहीद देख हेत की भली जूं कामना।
तुरंत लोभ त्याग दे सजै न स्वार्थ सामाना।।18।।
प्रवीण सेठपारखी बौपार हांण ना बणै।
गुलाय लेय ग्राहकां तुरंत क्रोध ना तणै।
खरीद ठीक खर्च मांत्र काल ले मणां मणां।
उठाय लाभ ओसरा घमंड गर्व ना घणा।।19।।
किसान ध्यान हेत कूं मिझान खेत मेनती।
टैल न टेम बांणरी अंवेर खेतियां अती।।
रूलै न धाम रास रो न धूप मेह धारवे।
उपाय लख्य आपरो तिको प्रवीण त्यार वे।।20।।
सदा कराय काम कूं मनां रिझाय मालकां।
कहत्त काम ना कभी बिचै खिलात बालकां।।
दिया निदेस दौड़ के हूंसार देय हाजरी।
निभै प्रवीण नौकरी भली किधी भरी भरी।।21।।
प्रवीण वैद्य पारखी निदान रोग नाम में।
जगाय आस जिन्दगी दहे न ध्यान दास में।।
भचारू रोग भांपलै मिटाय देय मांदगी।
धिनो कुलां धनंतरी जुगाद करीत जगी।।22।।
पिता प्रवीण पुत्र कूं सुसुभ हूँत सीख दे।
जमाय जाजमां जगां ठमाय वित्त ठीक दे।।
फिरे न मोद फर्ज में न कर्ज सीस पै करै।
हुवे न हर्ज हात सूं न गर्ज तर्ज नीसरै।।23।।
प्रवीण मित्र प्रेमथी रगांय मित्र रेवसी।
सुखां सरोक वे सदा दुखांज साथ देवसी।।
दुखीज दोस्त देखनैं मुखां खुलाय मून नैं।
अरो विचाल आयनैं खिंडाय देय खून नैं।।24।।
रिझाय हाल चाल रे सुभाल तो सुजांण रा।
उठांण खांण आंण मांण की काम कांण रा।।
पिछाण होवसी परी हजार मांय हेकलो।
पटूज नागरी प्रभा हुनी गुनीज देखलो।।25।।
भारत प्रभा
गीत-भुगताग्रह
विस्व विचार सिर मोड़ छाजै देख भारत,
भारत मरोड़ सह जगत भाली।
इसड़ी प्रभा नहै छाई देसां अवर,
अवर हिंद री कीरत उजाली।।1।।
सातूं महाद्वीप बिच एसियो सिरै,
सिरै दिखणाद जहै हिन्द सोहे।
मुकुट हिन्द रो प्रान्त कस्मीर माना,
माना तकदीरज सीर मोहे।।2।।
पद महाउदधि हिन्द जिणदा पखारे,
पखारे चरण अरु लंख पाछै।
आथुणी कच्छ अर असम घर अगुणी,
सुणी जै इणीविध हिंद सांचै।।3।।
पावन धीर वसुन्दरा हिन्द री प्रबल,
प्रबल वीर प्रसविनी अरुं पेखां।
दानव संधारण अवतार लिया देव,
देव लीला धर हिन्द देखां।।4।।
अवतार लीधौ राघव भारतइला,
इला आरत पण मिटाणआया।
तारै सेवग त्रिकोल तारण तरण,
तारण तरण राम दैत ताया।।5।।
किसन धर अबतार धार लीला करी,
करी मार कौरवां लार खासी।
जोगेसर हूंत ाकई मन जोतिया,
बीतिया सुखी दिन ब्रज वासी।।6।।
चौइस ौतार धारिया चतुर्भुज,
चतुर्भुज मारिया दैत चालौ।
बिख्यात कीरती जेणरी विस्व में,
विस्व में तेणरी ख्यांत भालौ।।7।।
गौतम बुद्ध सा जलमिया हिन्द गेहां,
गेहां विदेसां क्रीत गूंजै।
बढ़ियो एसिया मांयने धर्म बौद्ध,
बौद्ध धरमा चरणलोग बूझै।।8।।
अहिंसा रूप महावीर भूप अवतरै,
तरै भवसागरां हूंत तारै।
घर जगत कीरत छाी जैन धरम,
धरमानुयायी सम्पत धारै।।9।।
कबीर सूर तुलसी रहिमन कमाई,
कमाई सीर हरिनाम केरी।
चौकुंट अखूंट भगतां तणी क्रीत चावी,
चावी मीरां हर नाम चेरी।।10।।
केसव ईसर अलू नरहर कीरती,
कीरती जिकां री जगत कूंटां।
बिबेकान्द री प्रभ विस्व बिचालै,
बिचालै मान घण ध्यानबूठां।।11।।
सुरसती दयानन्द भारत सुधारै,
सुधारै, बापू हालत सारी।
बापू नाम नै वन्दे सह विस्वा रा,
विस्व रा लोग सह जायवारी।।12।।
बहादुर लाल प्रभ बारत बढ़ावै,
बढ़ावै चढ़ावै देस बांको।
देस भगत इसड़ाज थोड़ा देखिया,
देखिया फोड़ा जीवनी दाखौ।।13।।
होया रिख मुनी भारत हजारूं,
हजारू जोया भगवत हाचा।
कर सूं दधीजी निज हड्डी काट दी,
काट दी जीव रा नहीं काचा।।14।।
बाल्मिक विश्वामित्र ब्यास भाखिया,
भाखिया ग्यान रा ग्रन्थ भारी।
कोी बराबरी देस नहीं कर सके।
कर सके होड के अवर कांरी।।15।।
दसरथ राज तणी कीरत दिपै,
दिपै घण ऊजल कीरत दाता।
भागीरथ जिसड़ा जलमिया भरत भू,
भरत भू विख्यात लखन भ्राता।।16।।
कीरती दतारां मांयने करणरी,
करम री वीर कथ पात कीधी।
लेबियों सुजस विक्रमा रिव लोक में,
लोक में प्रभा घण भोज लीधी।।17।।
हरिसचंद्र जिसड़ा सतवादी हिन्द में,
हिन्द में जुधिष्ठर जिसा हाचा।
भीस्म अरजुन री विख्या वीरता,
बीरता गाथ भल भीम बाचा।।18।।
सतियां हुई भारत मही सैकड़ू,
सैकड़ू सुरग पति गया साचा।
एक नहीं गिणती जिकां री अनेकूं,
अनेकू तमा नाम जगत आछा।।19।।
कला कलाीदास दण्दी कवेसरां,
कवेसरां केसव नाम कीधो।
लाखीणौ सूरजमल मिसणलोक जस,
लोक जस मैथिलोसरण लीधो।।20।।
मेवाड़ धरा जलमिया महारांण,
रांणा प्रताप रो नाम राजै।
गाई जै गीतां मांय जेणरी गरिमा,
गरिमा धारि रिपू माथ गाजै।।21।।
अमर सिंघ दुरगादास ज ओलखां,
ओलकां वीरता नाम आंरो।
पृथ्वीराज चौहान ज वीर प्रभा,
प्रभा बढ़ाई सिवा प्यारो।।22।।
वीरांगणा मायं रांण दुर्गावती,
वती कीत भल लिछमी बाई।
जौहार रांणिया चितौड़ ज जोर रा,
जोर रा दौर री प्रभ जमाई।।23।।
वतन पर भकत सिंघ प्राण वारिया,
वारिया बारठ प्रताप बंकों।
डकारतो गोलियां सैतना डाट दी,
डाट दी बेरियां फौज डंको।।24।।
कौराई हिन्द री जबरी कवीजै,
कवीजै कमाल रो ख्यात कोरां।
अजन्ता अलोरा तणी गुफा आभा,
आभा इसड़ी नहँ देस ओरां।।25।।
जबरी महिमा जैसांण रा झरोखां,
झरोखां तणी ऐ जबर झांली।
भारत कौराई भवन अर भुरजालां,
भुरजालां मांही जबर भाली।।26।।
गीत अर संगीतां भारत अग्रगामी,
गामी सह विस्व रा इणी गेलो।
रसीलो जग सास्त्रीय संगीत राग में,
राग में प्रसिद्ध ओहिन्द रेलो।।27।।
नामी मन्दिर हुतौ सोमनाथ रो,
नाथ रो मन्दिर नाथद्वारो।
पग पग मन्दिर अर देवल पूजीजै,
पूजीजै हिन्द रो धरम प्यारौ।।28।।
महलां मांयनै विख्यात ताजमहल,
महल इण देसरा घणा मूंगा।
सिंणगार महल रांणियां नहीं सादा,
सादा सुकव सूरवीर सूंगा।।29।।
गरिमा विस्व में पावन नद गंगरी,
गंगरी प्रभा नर नार गेके।
गंडक जमुना ब्रह्म पुत्र गोदावरी,
दाव री दसा सह देस देखे।।30।।
हितु मानखे जड़ी बूटियां हिमालै,
हिमालै गयां तन मोख होवे।
रया कर तपस्या रिख हिन्द रुखाला,
रुखाला देखरिपु सींवरोवे।।31।।
पावन धाम सह हिन्द रा पूजीजै,
पूजीजै कासी अर अवध पेली।
बद्रीनाथ प्रयाग रामेस्वर ब्रज,
ब्रज वालो किसन भगत बैली।।32।।
छुयां छिती जेण पाप सह छूट वै,
छूट वैतूट वै करम छोटा।
मासन सुकव तो वन्दे भारत मही,
मही इण जलमवे भाग मोटा।।33।।

गुलाब-नगरी गरिमा
जैपुर नगर जहान में, बणियो मान बिखियात।
नगर गुलाबो नाम री, बणै निरखियां बात।।
बणै निरखियां बात मही मन मोहणी।
बाग बगीचां बीच सुकीरत सोहणी।।
कला इला सह कूंट फबै घण फूट री।
कीरत सुकवियांण चवै चौकूंटरी।।1।।
नगर बसायो नाम निज,जैसिंघ नृप जांण।
पीढ़ी दर पीड़ी प्रबल, महिमा बढ़ी महांण।।
महिमा बढ़ी महांण सहर री सान में।
कीरत भूपत काज जुड़त्त जहान में।।
रंग दहो घणराज काज किये कोड सूं।
सबसूं बढ़तो सहर दुबो घण होडसूं।।2।।
सांगानेर दिखण सरद, उतरादो आमेर।
इण बिच जैपुरसहर इल, फबै कोरती फरे।।
फबै कीरती फेर प्रभा चन्द पोलरी।
है मन्दिर हड़मान करीत किलोल री।।
मेलो रहे हमेस बमे सद् भावना।
दिलच्छा पूरण देब सोय करे सेवना।।3।।
मग गलताजी मालतां, सूरजपौल सरीक।
रवि मन्दिर आभा रही, ठावी करीत ठीक।।
ठावो कीरत ठीक जावे सु जातरी।
सोभा गंग समान प्रबल प्रभातरी।।
गलता कष्ट घटाय ध्यान अठ धारियां।
परस्यां मुती पाय नित्त नर नारियां।।4।।
रामगंज चौपड़ रसत, बड़ी चौपड़ विखियात।
छोटी चौपड़ री छबि, पूरी रात प्रभाव।।
पूरी रात रा प्रभात फंवारा फूटरा।
रंग सुरंगा रुप आभ अखूंटरा।।
निरख्या थाकै नैण चौपड़ चहल नै।
चौपड़ बढी चलाय मन्न हवा महल नै।।5।।
गोविन्द री महिमा घणी आभा मन्दिर और।
जावै लाखूं लोग चहँ, सांझ प्रात घण सोर।।
सांझ प्रात घण सोर नमै नर नारियां।
चाह करे चितचोर क आभ उच्चारियां।।
कीरत रच कवियांम भरे सद् भावना।
थिर राखे घण थोक घणी री ध्यावना।।6।।
चन्द्रमहल चितचौगणो आभ चित्रामां और।
निरख थाक वे सह नयण, जंतर मंतर जौर।।
जंतर मंतर जौर विद्या सु वासते।
ताड़कैस्वर तेज क चौड़े रासते।।
आभ बजारां और नेहरू नाम री।
भवन थयाज विराट कला कठा काम री।।7।।
जबरो बाग जैपुर रो, नामज रामनिवास।
चहल पहल चौकूंट री, ख्याती पाई खास।।
ख्याती पाई खास घूमै नव गोरियां।
सज सोला सिंणगार दिखावे दोरियां।।
उर में चढ़े उमंग हरखत हेत सूं।
महन ही मन मुस्कात झूमवे जेत सूं।।8।।
जैगढ़ री महिमा जबर, गढ़न ाहर गरिमाह।
लाखूं करेज लोगड़ा, आंख्यांदेख उछाह।।
आंख्यां देख उछाह भई प्रभ भाखरां।
दीसै जबरा द्रंग गजब री गोखरां।
गढ़ गमेश महाकाय सदा मन सेवगां।
सबसूं पेली सुमर दिपै भल देवगां।।9।।
चौड़ी सड़कां चालता, मन लाखूं मुलकाय।
जबर बसावट जैपुरी, सुर जन रया सराय।छ
सुर जन रया सराय, चतुरता चौगणी।
आधुनिक ढंग और सरावै सौगुणी।।
पाथ नखे घण पेड़ हुई हरयालियां।
सौभा सुरग समान भलीविध भालियां।।10।।
पग पग पर मन्दिरा परम कासी हंदी केल।
आभा बिंदराबन अठे, मथुरा जिसड़ो मेल।।
मथुरा जिसड़ो मेल पूज हरि प्रेम सूं।
भजन करीती भाव निभे नित नेमसूं।।
सांझ सवेरे सबल महिमा मन्दिरां।
लाभ जलम रो लेय क कोड कविनरा।।11।।
बसती नव लागी बसण बढ़गी जैपुर बेल।
आधुनिकीय प्रभाव अब जबरो रहिवो झेल।।
जबरो रहियो झेल क गरिमां गेह में।
आई पुनः उमंग दरिदर देह में।।
निबलां सूं अब नेह सरकार सज्जियो।
लखपत्तियां सूं लाग तियां अब तज्जियो।।12।।
आवासन बढ़ियो अधिक, नगर सास्त्री नाम।
जवाहर बसतीय जबर, करियो आछो काम।।
करियो आछो काम महिमा मकान री।
सरावणूं सरकार धरावण ध्यान री।।
आवासन दुख आज निबलां नेठियो।
सुन्दर ससतो संज भलीविध भेटियो।।13।।
रमणिक मन्दिर राम रो, बनीपार्क रे बीच।
आभ आधुनिकता अठे, खटके लावे खींच।।
खटकै लावे खींच नाम हरि नेह सूं।
आभा मूरत एथ सुविरद सेह सूं।।
पौद्धारी परबंध सरावण जोग सह।
आवहीं प्रातः ौरसांझ रा लोग सह।।14।।
मझ स्टेडियम मानसी, खेलां खेलण खास।
जैपुर विख्याता जिसूं, पोलो ग्राऊण्ड पास।।
पोलो ग्राउण्ड पास आसरीं ओटलां।
जैपुर मांही जबर हजारूं होटलां।।
सी स्कीम साबास महिमा मिसत री।
वृखां हंदी वाल बसावट बिसतरी।।15।।
बाजारां महिमा बढ़ी एक एक सूं ओर।
किण नै कीकर कम कहां, सब में अद को सौर।
सबमें अदको सौर त्रिपोल्यो तेज है।
जस जोहरी बाजार झिलै ना जेज है।।
बापू तणे बजार सजावट सांतरी।
पूरम प्रभा प्रकास उपावण आथ री।।16।।
इन्दिरा बाजार अवस, महिमा कारण मान।
सुण गरिबां री सबै, दोधी अठै दुकान।।
दीधी अठे दुकान क सुविधा सांत री।
मन्दिर दिपै महेस व्यथा किण बातरी।।
स्कुटर स्टेन्ड क साइकल साथ में।
सुविधा ग्राहक सहल बणी हर भांत में।।17।।
राजामल तालाव रै कियो नखे सद काम।
जनता बाजार जांण नै, नामी धरियो नाम।।
नामी धरियोनाम क साधन सोहणा।
दुकानाज दवार मुदै मन मोहणा।
रंग गुलाबी रास अठै घण आवियो।
सबै बजारां सूल छबी में छावियो।।18।।
रिच्छा करतां देसरो, प्रांण वारिया पूर।
उणी सहीदां ओड़ में, सद स्मारक सूर।।
सद स्मारक सूर बणायो भांत सूं।
प्रभा देख प्रका रुचि व्हे रात सूं।।
सहीद स्मारक संज काट नर कायरां।
जस वीराँ पर जोर क' सुकवि सायरां।।19।।
नगर गुलाबी नाम री, सबै गुलाबी सांन।
लिखतां थकाी लेखणी, बोल्यां थाकै बांण।।
बोल्यां थांकै बांण गुलाबी गोखरा।
गात गुलाबी गैल छबीला छोकरा।।
बालक बूड़ा भले जवानी जोरियां।
बसां गुलाबी बरण गुलाबी गोरियां।।20।।
दूजी कासी नाम दूं, 'पेरिस' भारत पूर।
लाभ जलम रो ना लियो जौ दरसण जैपुर दूर।।
दरसण जैपुर दूर, राम मत राख जै।
आडो निवला आय हिम्मतां हाक जै।।
दाखी लक्ष्मण दान प्रभा घण प्रेम सूं।
गरिमा जैपुर मान करो नित नेम सूं।।21।।
नारी-निकेत
'कवित्त'

जणणी रो रूप धूप छाँव सूं बचावे जीव,
आले सोवे आप सूखे टाबर सुलावे है।
ओपे रुप अर्द्धागिंणी रोपै वृख अनुराग,
इरी छियां आजीवण पुरुस ही पावे है।।
जोड़े सुक दुख जगां अंग नहीं मोड़े आप,
ओड़े खाय धाप चौड़े हालत छुपावे है।
मांगिया सेनाणी सिर काटदेवे नारी निज,
विदूसी विरांगनावां एसी बण आवे है।।1।।
मीठी सुधा रूप कोप धारियां गरल केरी,
चेरी रूप चिंतव नै बिये बड़ो हेत है।
कोमल बदन सारे क्रोधां बिकराल काल,
ज्वाला रूप धारै बालै दुंसटियां दैत है।।
चुलै चतुराई चाई गाई जै गीतड़ां गांण,
आवियां उफांण इसी खड़े अरि खेत है।
पूरम प्रवीण पथ पुरसां रखावे प्रेम,
नेम धारी भारी इसी नारियां निकेत है।।2।।
कंत आलींगण करे कामण कोमल कर,
उणी करां धार खग्ग अरि कुं उडावे है।
मैदी मांड्या फूर रचे जचे हथेलियां मांह,
रंगवे हथेली रग्त जिका खग्ग बावे है।।
पूनम सो चंद मुख बणे जेठ केरो रवि,
सीतल नयण नारी ज्वाला बण ज्यावे है।
कटी छीण कोमलांगी कठोर पहाड़ केरी,
कदली सी जंगा क्रोध थम्ब रुप थावे है।।3।।
दिवस कूं डरे रत नडिर व्हे अधरात,
ग्यानवान छोड़े गुण अग्यानी अरज है।
सीधे पथ चाले धीरे कूदै नदीनाला तिकी,
लाजवाली लंगर आ हुवे निरलज है।।
दयावान नाम पर काट देवे जीवां देह,
छोड़ देवे प्रिय छबी कामणियां कज है।
कोकिला से कंठ भच बोलवे कागसी बांण,
मांण मरजादा छंडै राजी जर्ह रज है।।4।।
नारी ही के वस देव नारी ही के वस दैत
नारी ही ने वस रंक सेठ सहूकरा है।
नारी ही के वस ग्यानी नारी ही के वस ध्यानी,
नारी ही के वस कवि सबै कलाकार है।।
नारी ही के वस कुल नारी ही के वस कांण,
नारी ही के वस हांण लाभिये आधार है।
नारी ही के वस ऊँच नारीं ही के वस नीच,
नारी ही केवस नरां सकल संसार है।।5।।
कुलीना कृतज्ञा कलावती कीर्तिवती काम,
दान सीला दिल गुण-ग्राहिणी गंभीर है।
सतवती बुद्धिवती धर्मवती क्लेस सहा,
जितेन्द्रीय अलोला सुचिंतज्ञा में सीर है।।
विनयवती सीलवंती सरला सत्य भाख,
सुचिवेसा सरुपा सप्रमाणा सरीर है।
उपकारी अल्पनिंद्रा मित्त भाखणी संतुष्ट,
नेहवती अल्पहारा नारियां रो नीर है।।6।।
सोतसाहा जित रोसा ससुलखणावती संग,
सुखासय साहसिका विवेकिनी वास है।
अनुतापिनी प्रियवाक लजावान और,
विज्ञानवती प्रसन्न-मुखी नरी आस है।।
संवृत्र मंत्र सुपाम्ररूचि जातिय सौभाग,
सदाचार सुविचार विश्व रो विकास है।
सुधरणी सुसंची सुसूत्रणी सुसील स्यामा,
पूजनीक एता गुण नारियां निवास है।।7।।
करे क्लेस घ मांय मद मतवालौ कंत,
गालियां सुणत नारी घरांणो गम्भीर हैं।
तडूंक उलटी कर आंगणे भरिया ताल,
रेतड़ी ऊपर रालै लगावत चीर है।।
कामण कर सूं ग्रामस खवाड़े कोड सूं खूब,
बगावे बेकूब बाने करणी रो कीर है।
धक्का खाय लेय पण छोड़े नहीं नारी धर्म,
करे सेवाकर्म धिन धिन नारी धीर है।।8।।
अमल में मस्त केई कतड़ा बिगाड़ै अंग,
बेगो जोय वृद्ध पणहुवे संज्ञा हीण है।
गांजा मांय गेलिञ्योड़ा घणेरा बजावे गेल,
खोटा करे खेल देख हुवे नारी खीण है।।
भांगां मांय भोला घमा बणत उगाड़ा भांड,
करे राँड रांड कंत नहीं मेक मीण है।
हरेक नसा री खोड़ नारी रो उडावे हास,
राखे मरजादा रीत परणी प्रवीण है।।9।।
बापरत अन री नहीं होवत समय बीच,
खींच तांण घरां रोज रोज हुवै खासी है।
झीर झीर दुकूल में जोड़ायत तणओ जोग,
रोग नित नवां घरां पड़ै गल पासी है।।
कंत निरमोही सोही छोडियो घरेलु कोड,
खोटी दसा नारी निस अहर उदासी है।
संकट विपत तणो सामनो करण सीर,
बणायो सरीर नारी साहस सैबासी है।।10।।
टापर चवत चवमासे घमआ टप टप,
जगां बैठ बाने नहीं दुखी जोड़ायत है।
गीला हुया गाबा अरू गूदड़ा घमेरा घर,
बे-असर ईनण ना इसड़े बगत है।।
कंत टाबर कलह करे कहे रोटी केत,
दारा री दसा तो दीखे दुखीयारी दत है।
फूंका देय देय धूवै आंखियां लीनी है फोड़,
तोई मुख मोड़ नारी जावे ना जगत है।।11।।
रोगी कंत पानै पड़े अवर दिखावे रौस,
ओछा सबदां में होस जोस में औछाई है।
सेवा सुसुसा में लीन साकड़ी सवेरे सांझ,
कांझ कांझ करै कंत और करड़ाई है।।
ओखद सेवन इसी रखावे रखा परेज,
संयम रखावे काम नारी नरमाई है।
दुखी कंत देख नारी होय जावे घणी दुखी,
सुख मांय सुखी नारी बड़े भाग पाई है।।12।।
सासरे आविया बडी रहत सहन सील,
देवर नणदां कदे ओड़ो ना दिरावे है।
जेठाणी देराणी संग बैठावै सनेह जोड़,
सासू र सुसरा काम देख नै सरावै है।।
कडूबे पड़िया टांणा दौड़ दौड़ करे काम,
भाम इस सासरिये सबै मन भावे है।
गुणवंती धिन धिन रुपाली वरम गौर,
कामण हिवड़े ठौड़ कंत रे करावे है।।13।।
धारमा महान् धर धरम प्रधान धेय,
पूजन भजन मांय नारी री पहल है।
सोले सोले करे नारी सविधि सिव रा सोम,
कामण मंगल करे बजरंगी बल है।।
बुध विसपत नारी उपवासा जावे बंध,
संघ जावे मनां सनी सुकर सहल है।
पूनम ग्यारस अमावस चवदस प्रेम,
नारी नेम धार करे महिमा महल है।।14।।
धीरे धीरे भूल रिवी नारी आदर्स धर्म,
कर कर नीचा कर्म लगावे कलंक है।
धन सुख आराम नै देखने छोडवे धीर,
सीर धनवान संग रोवे पति रंक है।।
लाज सर्म मरजादा मेलदी आला रे माहं,
जावतां आवतां लगी झरोकां झंक है।
आदर विहूणी इणी कारण नारी छै आज,
कटाया पुरसां कर पूजनीक पंक है।।15।।
काली कंकाली कोचरी काणी कुरुपी कुत्सित,
कुकर काकसरी काना बुटी कुहाड़ी है।
कुलखणी सापणी पापणी खड़ी ऊँचा कान,
ओछी देह रुली खली पड़ी काम माड़ी है।।
लाजहीण कूबड़ी दुर्गंध देही लम्बा दंत,
उछांछली चितावली फूड़़ राफ फाड़ी है।
जीभालो रीसाली पड़ी झूठ बोली काक जंघ,
नारी नेह हीण इसी बोलण नै बाड़ी है।।16।।
चौड़े नावे धोवे नरां देख चिलकावे चाम,
काम घर रा पे कछु ध्यान नाधरावे है।
आंखियां मिलावे ्‌रू बेवती हिलावे अंग,
पुरसां नैं देख पसवाडा पलकावे है।।
नित नित निवत दे निसा में पराया नरां,
खोटा व्यभीचारी खेल चक्कर चलावे है।।17।।
अधिकार नारी तणे जरूर उठा आवाज,
गाजपरी कहो किंम गरिमा गरत है।
चावा जगां जगां नारी रा छै क्यूं नागा चित्राम,
असलील रूप आज पग-पग परत है।।
मांग करो सारी मिल पाबन्दी लगावो पूर,
नारी विकृत रूप क्यूं साहित बिखत है।
माता रो आदर्स रूप भूलगा मरद मंद,
अंधपण मेटो कवि अरज करत है।।18।।
सरवर-हंस-संवाद
दूहा
क्हो हंसा इत सूं करो, किण कारण थ्हें कूंच।
कुण करसी थां  बिन कहो ? पावासर री पूछ।।1।।
हरगिज छुटै न हंस सूं, पावासर री प्रीत।ष
करम सिकारी कारणै, रख डर छंडे रीत।।2।।
भरज्यासी सरवर भले, हंसा प्रीती हेर।
कुछ दिन प्रीती कारणै, चुगलै कंकर फेर।।3।।
हंस तणी गारत हुई, चुग चुक कंकर चंच।
करमां लिखियां कांकरा, मिटगी मोत्यां मंछ।।4।।
हंसा छीलर सूं हुवो, थारो किणविध नेह।
प्रीत तणा थ्है पारखी, भल सरवर भारवैह।।5।।
पावासर तजियो परो, होय हँस मजबूर।
नहं छीलर सरवर नखे, दोनूं थमाज दूर।।6।।
किंम कारण इतरो कियो, हद छीलर सूँ नेह।
पावासर री प्रती सूं हंसा लीधो छेह।।7।।
करम भमाडै हंस कूं, नहं छीलर सूं नेह।
तिण कारण सरवर तजे, (पण)छोजन दीधा छेह।।8।।
क्यूं नहँ आवे हंस कूं, प्रती पुराणी याद।
तड़फे पावासर तदिन, जिणरी प्रीत जुगाद।।9।।
उड़िया हंस अभाग सूं, बैठा दूरा जाय।
पग्वासर री प्रीतड़ी, पल पल में पछताय।।10।।
जोवण मोती जाविया, हंसा सरवर छोड़।
कदैक पाछा आवस्यी, इतै निभावण ओड़।।11।।
सरवर सूं उड हंसला, जोया मोती जाय।
मोत तो मिलिया नहीं, पोचा करम सताय।।12।।
हंसा सरवर सूखियां, करगा किणविधि कूच।
पड़िया रहता प्रीत सूं, करतीदुनिया पूछ।।13।।
सरवर सारा सूखिया, भरता भूख मराल।
भरिथा सरवर री भले, पेख सक्यान पाल।।14।।
हंसा अब दूरा हुवा, जोवम मोत्यां जोस।
बातां बणी बिछोौव री, देवां किण ने दोस।।15।।
सरवर दुखीज हंस बिन, सरवर बिन दुख हंस।
विधना तणा बिछोवड़ा, करम ज बणियो कंस।।16।।
अब हंसा कद आवस्यो, पावासर री पाल।
थां बिन हूं सूनो थयो, सरवर दसा समाल।।17।।
डाबर डाबर डौलिया, पोचा दिन पायांह।
सरवर हंसा पूगसी, आछा दिन आयांह।।18।।
देख निभावां रात दिन, पड़ौसी सूं प्रीत।
सरवर पूछै हँसला, तो कुछ कैसी रीत।।19।।
बचपण सूं प्रीती वदै, हंसा सरवर संग।
भलेा भर जीवण बसे, राचै प्रीती रंग।।20।।
संग रमा थारे सदा समझा तोनूं सैंण।
थारे मन कांई थई, बोल हंस चित बैंण।।21।।
पलिया पावासर नरखे, पावासर दी प्रीत।
जीवण भर रहणो जठे, आ हंसा री रीत।।22।।
चांचा मोती चुगण में, सह दिन रही सचेत।
गयो मोतड़ि खूटियां, (थांरो) हंसा किण दिसहेत।।23।।
आदर सूं रूकिया अठे, मोती चुगम मराल।
बिन आदर रुकमओ बुरौ, भाखे हंसा भाल।।24।।
हंसा पंख पसारिया, सरवर तीरां आय।
सरवर जे बद सोचवे, लहरां हूंत लेजाय।।25।।
कीं न म्हारो कर सको, सरवर समझण हार।
की बद सोचणियो करे, जद करे साय किरतार।।26।।
हंस कहे रे सरवरा, करया जे म्हां कूंच।
सूनो सूनो लागसी, पछै न थारी पूछ।।27।।
हंस सरवर सूं न मनै मनै मोतिया पाय।
सरवर नै बिन मोतिया, दोस दियो किम जाय।।28।।
नित सरवरलहरां नखे, करता हंस किलोल।
सरवर पांणी सूखिया, किणविध तजवो कोल।।29।।
सरवर आमत जांण जे, और न हंसां आस।
जितही हंसा आवसी, वणसी आणंद बास।।30।।
सरवर थारे मन सदा, म्हारे कारण मोद।
म्हां जे मुखड़ो मोड़ियो, आसी मनां प्रमोद।।31।।
संग रया सुख में सदा, ओर न मोड्‌यो अंग।
दुख में छेह न यूँ दहो, सुण हंसा चित चंग।।32।।
जद हंसा कित जावसो, गयां सिन्ध जल गौण।
आस लगा रहसां अठै, होसी लिखिया हौण।।33।।
क्हो हंसा जासो कठै, मोती नेठ्यां मीत।
पड़िया रहम्यां पालपर, राखण नेहां रीत।।34।।
थें हंसा पंखां थका, और लगालो आस।
सरवर पंखां बायरो, कियांकरे बिसवास।।35।।
रे सरवर तूं हंस री, प्रती सकै न पिछांण।
दाखां जिका न देखिया, समझे बोर समांण।।36।।
सुण हंस सरवर कहे, भोग रया मन भेट।
सावण रो सुख सोहणो, जचसी तो किम जेठ।।37।।
हंसा भूख प्रीत रा, सुण सरवर कर ध्यांन।
समझण हार सुजांण रे, सावण जेठ समांण।।38।।
मास जेठ रे मांय नै, सरवर ज्यासी सूख।
मोत्यां बिना मदाल री, भाजेला किम भूख।।39।।
निज स्वारथ हित नां करां, बोदी प्रती बिछोह।
चितप्रीति कंकर चुगै, मोत्यां सूँतज मोह।।40।।
क्यूँ हंसा चिंता करे, म्हारे थकांज मीत।
जल जितरै भल जांण लै, (पछै) पाल राखसी प्रीत।।41।।
चित में लागी चिंतड़ी, अगले दिन री आय।
आसी या नहै आवसी, हँस पाल रे दाय।।42।।
निकां पाल निभावसी, सरवर वालौ साख।
बेठ प्रीत की बारियां, तकज्यो जूनी ताक।।43।।
रे सरवर मन राखस्या, अपमओ जूनो साख।
चित नह मिलियां चालसी, हंस डेरला हाक।।44।।
सरवर रो सुख सौहणो, छोडन लेवो छेह।
पछे हंस पछतावसी, कर छीलर सूँ नेह।।45।।
प्रेम पंथ हंस बहे, (पण) कायल नांय कहाय।
सद मन बिना न संचरै, जित आदर उत जाय।।46।।
निज कुल बात निभावणी, सरवर देवे सीख।
इह ठोड़ां मोती मिलै, भटक्यां मिलै न भीख।।47।।
मोत्यां बिन भूखां मरां, करा नहीं जे कूंच।
हुवे न जग में हंसरी, पुरसारथ बिन पूछ।।48।।
हंसा थे आदि हुवा, भटकण तणे स्वाभाव।
लाखीणो सरवर लगे, थांने लाख न साव।।49।।
सागै बहमओ बगत रै, इसी जगत री रीत।
हंस न आदार होवतो, जे वे भटकण प्रीत।।50।।
सरवर पूछै हंसला, कारण मूज बताय।
सदा रोह किंम एकसा, सुख दुख एक बणाय।।51।।
कदैक कंकर खाविया, कदैक मोत्यां मौज।
हिम्मत मन में हंस रे, उपजै हर पल औज।।52।।
हिम्मत थारी हंसला, सरवर घणी सराय।
कदैक कंकर खायकै, दुख और न दरसाय।।53।।
सरवर निज दुखरी सदा, बात न और बताय।
आडा कोई न आवसी, ओरू हंसी उडाय।।54।।
घण फिरयिां महिमा घटै, देवे जण जण दोस।
अपणी ठोड़ां ओपवै, सुण हंसा कर होस।।55।।
बिन कारम कहदे बुरा, देवे झुठा दोस।
सरवर यूं नहै सोचवे, औ म्हांने अफसोस।।56।।
हंसा अपणे आपकूं, इता न समझो ऊँच।
फरक न पड़सी सरवरां, करगा जे थां कूंच।।57।।
बक मछ कछ डेडर बतक, ओरूं जीव अनेक।
सरवर में म्हारे समो, आछो लगे न एक।।57।।
सरवर सूं थे रुसस्यो, दूजो सरवर देख।
थांने तो सरवर घमा, म्हांने हंस अनेक।।59।।
बणी प्रीत वांसू बढ़ी, बांसू, मती बिगाड़।
हंस कहे रे सरवरा, तज प्रीती मत ताड़।।60।।
कैयां सूं प्रती करे, अपणे स्वारथ अंस।
देखां जैसी दाखवां है झूठी ना हंस।।61।।
सांच कहूं हूं सरवरा, (थूं) समझे प्रती न सार।
करां प्रीत म्हां एक सूं हुवां न संग हजार।।62।।
नव जल थूं जांणै नहीं, दाखे सरवर पाल।
हंस करो न बराबरी, प्रीत पुराणी भाल।।63।।
नवजल थूं समझे नहीं, हूँ म्है समझण हार।
जूनै जल री प्रीतड़ी, हंस लांई चित धार।।64।।
थारे गुण रो ही थंनै, इतरो क्यूँ अभिमांण।
हंस कहे रे सरवरा, मत कर इतो गुमांण।।65।।
कैयां री सेवा करूं, घट में भलो गरुर।
समझण में थारे फरक, परख बात नैं पूर।।66।।
रात दिवसहिक ठौड़ रह, और निभावां ओड़।
सरवर सूं नहं संचरै, हंसा प्रतीो छोड़।।67।।
सरवर ही राखे सदा, निजमिंता सूं नेह।
हरगज देवूँ हंस नै, छता जलां नहं छेह।।68।।
हुमक करो अब हंस नै, पड़सी जायां पार।
कितरा दिन यूँ काठस्यां, बिन मोत्यां बेकार।।69।।
अपणायत राखो अती, सुख दुख बात समेत।
ज्यांसूं कयो न जावसी, हंसा जावण हेत।।70।।
रखी नहीं जे हंस री, पावासर थूं पूछ।
पावासर रा पामणा, करज्यासी अब कूँच।।71।।
सरवर समझे हंस कूँ, सच्चा अपमा सैंण।
हंसा बिन ही कारणा, दोस लगा किंम दैण।।72।।
सरवर लागै सांतरा, कारण हंसां केल।
पूछ करे नह पंथ रा, म्हारो जे नहं मेल।।
बिन सरवर हंस खड़ा, दहसी दुनिया दोस।
रहे पूछ ना हंस री, आसी कर अफसोस।।74।।
हंसा डेरा हाकिया, सूनी सरवर कौंर।
रहसी भरिया सरवरा, आसी हंसा ौर।।75।।
बक सूं हेत बणावियो, रे सरवर तज रीत।
बुगला सरवर रे बणी, कही कदूणी प्रीत।।76।।
थें तो उड आगा थया, मो चहिजे हिक मीत।
हंस नहीं बुगला सही, पर कारण री प्रती।।77।।
सरवर तूं नहं समझवे, आदात बुगलां और।
आडा कदैन आवसी, ढब स्वारथ रा ठौर।।78।।
हंस अरू सारस हुवा, दोनूं म्हां सूं दूर।
बुगला मीत बणाविया, हो सरवर मजबूर।।79।।
सरवर किणविध खूटियो, जूनी प्रीती जोस।
थ्हां हंसा आगा थया, दो क्यूं म्हांने दोस।।80।।
थे हंसा किंम था किया, मझ जोबन रे मांह।
हंसा करमां वस हुवा, कारी लगे न कहा।।81।।
क्हो हंसा किंम कारणै, ऊंडी बैठो अंख।
समझू ने चिंता घणी, सठ मन रहे निसंक।।82।।
संकट सूं कर सामनो, न वो हंस निरास।
आसा रो फल ऊजलो, वमेकाज विसवास।।83।।
हिम्मत खूटी हंस री, और मिटी आसाह।
पड़िया करमां कारणे, जीवण रा सांसांह।।84।।
धीरज हंसा धार ले, निसकारा मत नाख।
अपणा ही तज ऊभसी, संकट मांही साख।।85।।
मझ जोबन रे मांयने, पांखां दियो जबाब।
कीकर म्हां पूरा करां, ऐ आकासी ख्वाब।।86।।
तूं हंसा हिम्मत तज्यां, मोमन लागै तीर।
कोरो मन कांई करे, साथ दहे न सरीर।।87।।
डाबर डाबर डोलिया, सरवर करे सवाल।
कह्‌ो पर देसीं पामणा, थांरा किसा हवाल।।88।।
अभखी बेला आवियां, सह जोयो संसार।
सुख में सब ही साथ रे, दुख में नायं दीदार।।89।।
क्हो हंसा कैसा हुवा, दर दर थांरा दीन।
लाखीणा घर में लगां, होयां बाहर हीण।।90।।
सरवर पांणी छोड़ने, हंस गया परदेस।
बै हंसा अब बावड्‌या, सर जल नालवलेस।।91।।
पावासर पछतावियो, पंछी सूं कर प्रती।
रीतो हुयगो सरवरो, चित वत प्रीती चीत।।92।।
सरवर सूखण लागय, ठई हंस चित ठेस।
उडिया हंस आकास में, देवण मेघ संदेस।।93।।
ओलावाज उपाविया, हंसा स्वारथ हेत।
पार पड़ी नहैं परसरां, आया पाछा एथ।।94।।
पाणी निठता पंछियां सारा जीव समेत।
कयी हंसा नै जा कहो, आवण मेघां एथ।।95।।
थांरो तो स्वारथ थयो, और भयो उपकार।
क्यूं हंसा झूठी कहो, चित में बात चितार।।96।।
सरवर झूठी ना समझ, बरणी हंसां बात।
बात पाल नै पूछलौ, ुर नव जल अग्यात।।97।।
बातां सबै बतावसी, महांने आवत मेह।
क्यूं हंसा आगत करै, दौसत आवण देह।।98।।
बादल आय बरसिया, हंसां हुवो हुलास।
बिगड़ी बात बणाय दी, आय पूर दी आस।।99।।
मेहो बरसत मानियो, सरवर सांची बात।
हंसा झूठा ना हुवा, दिला चंगा अवदात।।100।।

नीति-सतक
दूहा
मात उदर नव मास में, भमवे भीतर भ्रूण।
मलवे हरि रे महर सूं, जग में मिनखा जूण।।1।।
जलम जलम रा जोग जुड़़, बणावे नर रा भाग।
होय खुसी बालक हुवां, उर उर में अनुराग।।2।।
भगवत गत नैं भूलियां, चित में स्वारथ चेत।
अजाय हुयां दुख ऊपजै, सुत सुख रो संकेत।।3।।
बेटीं री हर बगत में, घर में मांय गिनार।
बेटां रा उत्सव बहुत, स्वारथिये संसार।।4।।
बेटो दहे न बाजरी, लहे न बेटी लांण।
माया ईस्वर मांण नैं,क्यूं मन राखो कांण।।5।।
लाडणो वाजब लाड में, पींण खांण दो पूत।
बांडायां करतां बगत, झकावो सिर जूत।।6।।
समझ लेवतांई सजग, धरो पढ़ाई ध्यान।
चित लागै विद्या चहण, घट में उपजै ग्यान।।7।।
कुत्ता फिरै न कूटतो, परो जाय पौसाल।
आग्याकारी आत्मज, भलक चमक सी भाल।।8।।
काम करण रो कोड व्हे, हां दीखे हुँसियार।
मधुर बोल मुसकात मन, दुरलभ पूत दीदार।।9।।
रहवे रीत रिवास सूं, मरजादा कुल मांय।
अंजस तिणरे ऊपरां, पूत तिका जस पाय।।10।।
पढ़लिख विद्यापूर नैं, होय परा हुँसियार।
देवण देस समाज नैं, तिण सेवा हित प्यार।।11।।
सुध बुध राखे सांत री, पुरसारथ पथ पाय।
धीरज धरम उमंग धर, साथे रखो सवाय।।12।।
बेगो उठमओ बौर में, सोणओ बेगो सांझ।
सारे दिन महनत सजो, मेला तन नैं मांझ।।13।।
ओले बैठो आयनैं, आछै आसण आर।
हां खांणो खुस होय के, तातो भोजन त्यार।।14।।
महर हरि री मांण नै, चखो ग्रास चबार।
खांणौ नहचे खावमओ, हूँतां काम हजार।।15।।
भचक चलावे भावना, स्वाद अणावे सोय।
भोजन इसड़ो ना भखो, हांणी तन री होय।।16।।
अंवेर्यां तन नै अवस, रहसी स्वस्थ सरीर।
जग में सुख सूं जोवणो, सद ऊभर में सीर।।17।।
बेपरवाई बरतवे, घरे न तन पर ध्यांन।
अदबिच जीवन में अठे अड़वे गाडो आन।।18।।
काम वासना राख कम, संयम राकमओ साथ।
आखे जीवण आपरी, बिगड़ै नांही, बात।।19।।
रहणो जबर परेज सूं, रे लाग्यां तन रोग।
ओखद उपचारां अवस, नामी हुवै निरोग।।20।।
कदै न करमओ कामड़ो, लेवण ओरां लाज।
तत्पर रहमओ रात दिन, करण भलाई काज।।21।।
जीणो थोड़ो जगत में, बोलो मीठी बांण।
हरगिज अपणे हाथ सूं, हुवै न ओरां हांण।।22।।
रे डर हिये न राखणो, बोलण सांची बात।
खरी केवतां खलक में, जोरां रूसे जात।।23।।
बिरला ही सतभाखवे, संयम बिरल्लां सथ्थ।
राम भरोसे रेवणो, सदनीति समरथ्थ।।24।।
राल भलाई करकुए, हुवे न स्वारथ हेत।
समरथ हूता ही सजण, दुख निबलां नहं देत।।25।।
गरबीजौ नांही घमा, औ जोबन जल औस।
अमर रिया किणरा अठे, जौर हुकम धन जौस।।26।।
बतलायां नहँ बोलेव, करड़ाी मन क्रोध।
झिलियां काल झपेट में, मिटज्यासी सहमोद।।27।।
बदनीती चित में बसी, कामां स्वारथ कान।
इसड़ा नैं नहँ आदरो, जगत भलाई जांण।।28।।
घट में तो छुरियां घसै, बोले मीठा बोल।
ते नर औसर ताक नैं, छल छल लैसी छोल।।29।।
बोले नीती बांणियां, बदनीती व्यवहार।
करणी कथणी में फरक, मोके लेवे मार।।30।।
भायां सूं आच्छी बरत, मदद करो घणमान।
आडा विपदां आवसी, संकट में रख सांन।।31।।
दूजा रखे दिखावटी, कर वे झूठा कोड।
विपदा आलस में बलु, हुवे न भायां होड।।32।।
मतलब सूं दुनियां मिलै, गरजां मिटिया गौण।
सायक भाी सासता, हलकारै हिक हौंण।33।।
भीड़ भयंता भायला, दूर हुवे दरसाव।
भीड़ां पीड़ां में बलू, भाई रख सद्भाव।।34।।
भायां री सोचो भली, घट में रखो न घात।
औसर मौसर आपणी, भाई रखसी बात।।35।।
साथी करणो सोचने, पूरी देखो पोच।
आंणे टांणे ऊपरां, मन ना लांणौ मोच।।36।।
विपदां में रहणो बलू, संकट मे जो साथ।
साथी रे सारू सदा, हाजर रिच्चा हाथ।।37।।
दिल सूं कर वे दोसती, फरक न लावे फरे।
स्सारथ नांही सोचवै, हाचो दोसत हेर।।38।।
हुनिया में अब दोसती, केवल स्वारथ काज।
जोरां धन तन वै जठे, आखा बैठे आज।।39।।
सोनो साख समझिये, पारस सम है प्रीत।
दुनिया में सद् दोसती, मराग अबडो मीत।।40।।
करजो सिर नांही करो, हरजो इमे हजार।
बरजो करतां भाईयां, दरजो नीचे द्वार।।41।।
लहमओ करियां लोक में, गहणो रहे न घास।
सहमओ बोरा रा सबद, रहणो मुख ना रास।।42।।
आंणा टांणा ऊपरा,ं खांणां गांणा खूब।
दाणां मुसकल डीकरां, माणां बद मनसूब।।43।।
मोलां नै केइ मिनख, छोलां देय छडाय।
रोलां में आगै रियां, पोलां में दुख पाय।।44।।
आबे बात न ओर री, जावे नाहंी झोड़।
तावे ना दुरबल तिका, मन भावे सिर मोड़।।45।।
सादा रहणो सज्जणा, मरजादा कुल माण।
बाधा जीवण ना बणे, कादा लगे न कांण।।46।।
जीबण इसड़ो जोवणो, नींवण रहवे नाम।
पींवण खावम में प्रबल, तींवण रहे तमाम।।47।।
बाचा साचा बोलवे, दृढ़ काछा मन देख।
पाछा पड़े न दान पथ, क्रोड़ां राचा केक।।48।।
तपतो जबरे तावड़े, खपतो रहवे खेत।
धड़ियां मपतो धानधर, जपतो घर ले जेत।।49।।
भायो इणविध बिगड़ियो, आलस छायौ अंग।
कायो करत कुटम्बियां, तायो रहसी तंग।।50।।
कोजी संगत ना करो, भणसी जीवण भार।
आच्छी संगत में अवस, जाजम बैठो जार।।51।।
हांणी धन तन री हुवै, मूंडा जोवण मान।
बीड़ी पीवण है बुरी, धूँवौ काढ़ण ध्यान।।52।।
कालो हुयगो कालजो, धांस धांस नित धाम।
लत्त बुरी आ लागगी, नसा बीड़ियां नाम।।53।।
रोगी ज्यूँ सूता रहे, चावे मांचे चाय।
रग रग अबप रम रही, बाल जुवा बृद्धाय।।54।।
जहर चाय नैं जांणणो, धन तन री व्हे घूड़।
बार बार पीवै भलै, फूल्या जावै फूड़।।55।।
अमल घणेरो ओगणी, मौत बुलावे मान।
आलस मांही ऊंगता, काम न देवे कान।।56।।
मिलत करे मनवारियां, तर तर अलमी तन्न।
बणती बात बिगाड़ दे, मिल्यां नसेड़ी मन्न।।57।।
घोटे दुख रा घोल नै, झर भर रिपिया जाय।
मोत तणी मनवारियां, आपस मांय कराय।।58।।
सादी अवर सगाईयां, मरियाँ ठरियां मेल।
अमल बिगाड़ै आत्मां घूमे बैठा  गेल।।59।।
लारो पकड़े लोग रो, सारौ बिगड़ै साव।
दर दर माहंी होरयो, दारू रो दरसाव।।60।।
धुत्त हुयोड़ा धावता, उर खोटो उन्माद।
केई दारू कारणै, आज बढ़ै अपराध।।61।।
अणपढ़िया पढ़िया अवस, जांणकार बद जोग।
मदिरा रो इण मुलक में, रै लाग्यो घणरोग।।62।।
मान प्रसाद महेस रो, भूंडी खावे भांग।
भोला सिव नैं क्यूं भले, बैठा देवे बांग।।63।।
गांजां मांय गेलिजिया, अंग बिगाड़ै और।
गावां सहरां में घणो, दर दर देखो दौर।।64।।
चिलमां में चढ़ चाढ़वे, सुलफो गांजो साथ।
धूंवो काढ़ै धूजतां, हांणी वाला हाथ।।65।।
दूसण ओर न देखणा, दहो न ओरां दोस।
ध्यान अपमओ धारिये, हितककर राखो होस।।66।।
पग बलती नाँ ठा पड़ै, धरां परबतां ध्यांन।
कैयां री निंदा करां, औ अपणौ अग्यान।।67।।
राई गुण अपणओ रयो, समझां गिरी समान।
गरबीजां मन में घणां, धरां न ओरां ध्यांन।।68।।
दोखी सीखां देवियां, जड़ा मूल सूं जाय।
लागो भूंडा लोक में, पथ नरगां रा पाय।।69।।
भोला नर सीखां भिलै, पा दुखड़ो पछताय।
दोखी सीखां देवता, हाची लागै हाय।।70।।
बिन महनत हालत बुरी, मालत टोटा मांय।
महनत सूं सब कुछ मिल,ै सुरजन करे सहाय।।71।।
आसी गलत आमदनी, करवासी बद काम।
पड़जासी पासी गले, छिप जासी न छदाम।।72।।
आयां भली आमदनी, जग में आखिर जैत।
आणंद थवौ आतमा, हरखावे मन हेत।।73।।
सद बुद्धी राखो सदा, चित महनत हर चाय।
जीणो कितरो जगत में, थिर जना जोबन थाय।।74।।
बिन महनत इण बगत में, पड़णी दुरलभ पार।
खरचो करणओ खलक में, आमद रे अनुसार।।75।।
खरचो करियो खलक में, होय चेतणा हीण।
करजा मांय कलीजिया, दर दर खोटा दीण।।76।।
आडा कोय न आवसी, बाढ़ां करजा बीच।
पांज बंधावो पहल सूं, (नतो) खटकै लैसी खींच।।77।।
खुसी होयनें खावणओ, रुखा सूखा रोट।
बिन सांयत जीमण बुरा, चित में करसी चोट।।78।।
चित नाहंी ललचावमओ, औरां देख आणंद।
अपणे झूंपण आय नै, गुण गावो गोबिन्द।।79।।
धरिया रहजासी धरा, सुख भौतिक संसार।
आडो ईश्वर आवसी, पथ, साकेतां, पार।।80।।
सगपण करमओ सोचने, पूछताछ कर पूर।
बेटी नै हूंता बगत, दैणी नांही दूर।।81।।
घर वर देखो गौर सूं, सला देवणी सैंण।
बेटी दो बराबर यां, दिल में हुवे न दैंण।।82।।
मोटा सूं फसज्यो मतो, खोटा करसी खेल।
बहुवां नैं ऐ बाल दै, तन पर छिड़कर तेल।।83।।
टीको लेणो टाबरा,ं कोजी थई कुरीत।
डुलमओ नहीं दहेज हित, भीतर नै कर भींत।।84।।
देवे जिसड़ो सिर लहो, सगै गिनायत सांन।
ला ला करतां लोक में, आसी सिर अपमान।।85।।
पूतां नै परणावणा, घरांणै ज गरीब।
(वधु) हीड़ा करे हुलास सूं, सामी करे न जीब।।86।।
खाणा पीणा खेलणा, बेग संवारे बाल।
बड़ा घरां री बेटियां, नाहंी करसी न्याल।।87।।
पूत अजा परणावियां, बो सरि उतरै बोझ।
सुदबरती सूं संचरै, मिनखा तन री मोज।।88।।
हिम्मत जितरो हालणो, माड्यां नांही मान।
सूंपो घर संतान नैं, घर घर राखो ध्यान।।89।।
ताग्यां खातो ना तड़फ, बैठो दांत न भींच।
धोला सिर पर धारिया, बरस साठ रे बीच।।90।।
पजणो बुरा न पंथ मे,ं तजणो लोभ तमाम।
आश्रम चौथे आवियां, नित भजणो हरिनाम।।91।।
धीणो अन धन धाम है, महिमा अर जग मान।
बेटां पोतां थाट बहु, धर तूं ईश्वर ध्यान।।92।।
आच्छी सला उपावणी, सबनैं समझ समाज।
पूजनीक परिवार में, (तूं) आगो कर अग्यान।।93।।
स्वाद जीभ रो छोड सब, चिकणाई मत चाव।
काया रे अनुकूल ही, खाणो सादो खाव।।94।।
अलड़ बलड़ अरोगिया, देह कुवे त्रिदोस।
मांचै भुगतै मांदगी, करमां ने मत कोस।।95।।
त्याग बिरत तूं तामसी, दुरबिसनां सूं दूर।
जग में थोडो जीवणो, भजो हरि भरपूर।।96।।
जतन अरु रख जबातो, सरदी आच्छी सेज।
घर सूं बाहर घूमणो, चढ़िया तावड़ तेज।।97।।
दत्त घर सारू देवमओ, पंछीअन जल पाय।
तीरथ करो तयारियां, अपनी देखर आय।।98।।
दिल हरखे जग देखियां, नमैः लेय सब नाम।
अमर रहे इल ऊपरै, करमओ इसड़ो काम।।99।।
सुख नांही संसार में, दुख रा सह दीदार।
मारग मुगती रौ मिलै, (जद) सफल जलम संसार।।100।।

पन्ना 11

 

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